प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश | 23 जून 2025
प्रतापगढ़ जिले के किसानों की हालत इन दिनों बेहद चिंताजनक हो चुकी है। खेतों में धान की फसल लगाने का मौसम चल रहा है, लेकिन कई गांवों के किसान खेतों में पानी नहीं पहुंचा पा रहे हैं। वजह सिर्फ एक—बिजली विभाग की लापरवाही और छह महीने से ट्रांसफार्मर की आपूर्ति न होना।
यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब किसान बताते हैं कि उन्होंने नलकूप कनेक्शन के लिए बिजली विभाग से अनुमति लेकर पूरी प्रक्रिया पूरी की, एस्टीमेट पर हस्ताक्षर किए और ट्रांसफारर के लिए पैसा भी जमा कर दिया, लेकिन अब छह महीने बीत जाने के बाद भी 10 केवीए का ट्रांसफार्मर नहीं मिला। परिणामस्वरूप उनकी सिंचाई ठप हो गई है, खेत सूख रहे हैं और धान की फसल बर्बादी की कगार पर खड़ी है।
“हमने पैसा भी दिया, फिर भी ट्रांसफार्मर नहीं मिला”
लोहड़ी पटेल, जो प्रतापगढ़ के एक अनुभवी किसान हैं, कहते हैं –
“हमने बिजली विभाग के कहे अनुसार फॉर्म भरा, एस्टीमेट बनवाया और ₹58,000 जमा भी कर दिया। हमें बताया गया कि 30 दिन में ट्रांसफार्मर मिल जाएगा। अब 6 महीने हो गए हैं। कोई पूछने वाला नहीं है। खेत बंजर हो गए हैं। हमने कर्ज लेकर खाद, बीज खरीदे थे, सब बर्बाद हो गया।”
उनके साथ-साथ शिवचरण शुक्ला, जीत लाल यादव और अन्य किसानों ने भी अपनी आपबीती सुनाई। सभी किसानों की एक ही शिकायत थी – “पैसा लिया गया, वादा किया गया, पर न ट्रांसफार्मर मिला और न बिजली।”
फसल का भविष्य अंधेरे में
प्रतापगढ़ में धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है। यह इलाका गंगा की तराई में आता है, जहां की मिट्टी धान के लिए उपयुक्त मानी जाती है। लेकिन जून-जुलाई का महीना, जो रोपाई का सबसे अहम समय होता है, बिजली और सिंचाई के अभाव में व्यर्थ जा रहा है।
धान की फसल के लिए नलकूपों की बिजली पर निर्भरता अधिक होती है, खासकर उन इलाकों में जहां बारिश असमान रूप से होती है। चूंकि ट्रांसफार्मर न मिलने के कारण नलकूप चालू नहीं हो पा रहे, किसानों को खेतों में सिर्फ सूखी दरारें ही दिखाई दे रही हैं।
बिजली विभाग का तर्क: “स्टॉक में ट्रांसफार्मर नहीं”
चिलबिला पावर स्टेशन के एसडीओ एस.के. पटेल ने मीडिया से बातचीत में कहा –
“हमारे स्टोर में 6 महीने से 10 केवीए ट्रांसफार्मर का स्टॉक नहीं है। हमने उच्चाधिकारियों को 125 ट्रांसफार्मरों की मांग भेजी है। जैसे ही ट्रांसफार्मर उपलब्ध होंगे, वितरण किया जाएगा।”
यह बयान सुनने में सामान्य लग सकता है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि किसानों को हर सप्ताह बिजली विभाग के कार्यालय के चक्कर काटने पड़ रहे हैं और अधिकारी सिर्फ ‘अभी नहीं आया है’ कहकर लौटा देते हैं।
क्या यह किसानों के साथ धोखा नहीं?
बड़ा सवाल यह है कि अगर ट्रांसफार्मर स्टॉक में नहीं थे, तो एस्टीमेट क्यों बनाया गया? और जब ट्रांसफार्मर देने की स्थिति नहीं थी, तो किसानों से हजारों रुपये का भुगतान क्यों लिया गया? क्या यह किसी सरकारी विभाग की असंवेदनशीलता नहीं है? क्या यह गरीब किसान के साथ सीधा शोषण नहीं है?
विनोद तिवारी, जो किसान संगठनों से जुड़े हैं, कहते हैं:
“सरकार एक ओर किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात करती है, दूसरी ओर ऐसी लापरवाही हो रही है कि किसान के पास बिजली तक नहीं है। यह योजनाओं और जमीनी हकीकत के बीच का अंतर दिखाता है।”
सरकार के दावे और किसानों की असलियत
2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा भाजपा सरकार की प्रमुख घोषणाओं में से एक था। लेकिन प्रतापगढ़ जैसी जगहों पर, जहां किसान अपनी सिंचाई की मूलभूत जरूरतों से जूझ रहे हैं, इस वादे की हकीकत सामने आ जाती है।
हर साल कृषि बजट बढ़ाया जाता है, सब्सिडी दी जाती है, लेकिन अगर ट्रांसफार्मर जैसे बेसिक इनपुट किसानों को समय पर न मिले, तो कोई भी योजना कागजों से बाहर नहीं निकल पाएगी।
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
इस ट्रांसफार्मर संकट का असर केवल फसल पर नहीं, बल्कि पूरे ग्रामीण जीवन पर पड़ रहा है:
आर्थिक नुकसान: खेत सूखने से किसान की साल भर की आमदनी खत्म हो जाती है।
कर्ज और आत्महत्या का खतरा: कई किसान कर्ज लेकर बीज और खाद खरीदते हैं। फसल बर्बाद होने पर वो चुकता नहीं कर पाते।
शिक्षा पर असर: खेती से आमदनी न होने पर बच्चे स्कूल छोड़कर मजदूरी में लग जाते हैं।
पलायन: ग्रामीण युवा नौकरी के लिए शहरों की ओर पलायन करने लगते हैं।
क्या करें किसान?
जिला प्रशासन को चाहिए कि वह तत्काल प्रभाव से:
1. बिजली विभाग से स्थिति रिपोर्ट ले।
2. ट्रांसफार्मर वितरण प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए।
3. जिन किसानों ने भुगतान किया है, उन्हें प्राथमिकता पर ट्रांसफार्मर दिए जाएं।
4. ट्रांसफार्मर की कमी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए।
विशेषज्ञ की राय
कृषि विशेषज्ञ प्रो. आर.के. मिश्रा कहते हैं:
> “अगर हम किसानों को समय पर सिंचाई सुविधा नहीं दे सकते, तो हम कृषि सुधार की बात ही क्यों करें? ट्रांसफार्मर जैसे उपकरणों की आपूर्ति और वितरण एक ऑटोमेटेड सिस्टम से होना चाहिए ताकि किसी के साथ भेदभाव न हो।”
ये सिर्फ एक ट्रांसफार्मर की बात नहीं है
यह खबर सिर्फ एक उपकरण की कमी की नहीं है, बल्कि देश की कृषि नीति, प्रशासनिक व्यवस्था और किसानों की स्थिति का आइना है। अगर एक ट्रांसफार्मर न मिलने से सैकड़ों एकड़ फसल बर्बाद हो रही है, तो सोचिए कि सिस्टम में कितनी बड़ी खामी है।
सरकार, विपक्ष, मीडिया, और समाज—सभी को यह देखना होगा कि किसान केवल चुनावी भाषणों का हिस्सा न बनें, बल्कि उन्हें समय पर और ईमानदारी से सेवाएं मिलें।
Reporter- Rajnikant Shastri